दादी-नानी और पिता-दादाजी के बातों का अनुसरण, संयम बरतते हुए समय के घेरे में रहकर जरा सा सावधानी बरतें तो कभी आपके घर में डॉ. नहीं आएगा. यहाँ पर दिए गए सभी नुस्खे और घरेलु उपचार कारगर और सिद्ध हैं... इसे अपनाकर अपने परिवार को निरोगी और सुखी बनायें.. रसोई घर के सब्जियों और फलों से उपचार एवं निखार पा सकते हैं. उसी की यहाँ जानकारी दी गई है. इस साइट में दिए गए कोई भी आलेख व्यावसायिक उद्देश्य से नहीं है. किसी भी दवा और नुस्खे को आजमाने से पहले एक बार नजदीकी डॉक्टर से परामर्श जरूर ले लें.
पुरे वर्ष सन् 2018 के पर्व त्यौहार निचे मौजूद है...

लेबल

आप यहाँ आये हमें अच्छा लगा... आपका स्वागत है

नोट : यहाँ पर प्रस्तुत आलेखों में स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी को संकलित करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयास किया गया है। पाठकों से अनुरोध है कि इनमें बताई गयी दवाओं/तरीकों का प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लेना उचित होगा।-राजेश मिश्रा

स्वास्थ लाभ के साथी, इस वेबसाइट से जुड़ें : राज

बुधवार, फ़रवरी 11, 2015

जलोदर रोग की सरल चिकित्सा.

Ascites simple treatment of the disease

पेट (Peritoneal Cavity) में पानी इकट्ठा होने लगने को जलोदर कहा जाता है। रोगी का पेट फूल जाता है। उदर में जल भर जाने पर उदर के फूलकर घड़े के आकार का हो जाने को जलोदर रोग कहते हैं जलोदर रोग में उदर में जल भरने से उदर बहुत स्थूल दिखाई देता है। जलोदर की चिकित्सा में अधिक विलम्ब किया जाए और भोजन में लापरवाही बरती जाए तो प्राणघातक स्थिति बन जाती है।

जलोदर के कारण--

जलोदर मुख्यतः लिवर के पुराने रोग से उत्पन्न होता है। खून में एल्ब्युमिन के स्तर में गिरावट होने का भी जलोदर से संबंध रहता है। चिकित्सकों के अनुसार अनियमित भोजन करने से पाचन क्रिया विकृत होती है तो भोजन के पूरी तरह नहीं पचने की स्थिति में अनेक दोष (विकार) उदर में एकत्र होने लगते है। दोषों के एकत्र होने पर अधिक जल पीने से जलोदर रोग की उत्पत्ति होती है।
आधुनिक चिकित्सकों के अनुसार हदय रोग और वृक्क (गुर्दों) में विकृति होने से जलोदर रोग की उत्पत्ति होती है। हदय रोग से पीड़ित होने पर जब हदय रक्त को पर्याप्त रूप में अपनी ओर खींच नहीं पाता है तो शिराओं में रक्त का भार बढ़ने लगता है। ऐसे में जलीय अंश उदर कलाओं और पांवों में एकत्र होने के साथ जलोदर की उत्पत्ति करता है। क्षय रोग के कारण जलोदर की विकृति हो सकती है।
भोजन में प्रकृति विरुद्ध, अधिक शीतल, वातकारक, अम्लीय रसों व उष्ण मिर्च-मसालों से बने खाद्य पदार्थो का सेवन करने से पाचन क्रिया विकृति होने के कारण जलोदर रोग की उत्पत्ति होती है। अधिक रक्ताल्पता, वृक्क शोध, हदय रोग, ग्रहणी रोग होने पर भी जलोदर रोग की संभावना बढ़ जाती है। स्त्रियों में गर्भाशय की विकृति के कारण भी जलोदर रोग हो सकता है। अर्श रोग व कामला (पीलिया) रोग की चिकित्सा में विलम्ब होने से भी जलोदर की उत्पत्ति हो सकती है।

जलोदर के लक्षण--
* पेट का फूलना
* सांस में तकलीफ
* टांगों की सूजन
* बेचैनी और भारीपन मेहसूस होना


हदय की धड़कन बढ़ जाती है। रोगी को बहुत कम मात्रा में मूत्र आता है। जलोदर रोग में यकृत व प्लीहा की वृद्धि भी हो सकती है। जलोदर रोग में कोष्ठबद्धता होने से अर्श रोग भी हो जाता है। मूत्र का अवरोध होने से रोगी की पीड़ा बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में ‘कैपीटर’ (मूत्रनली) की सहायता से मूत्र को निष्कासित किया जाता है। उदर में जल की अधिकता होने से रोगी को श्वास लेने में परेशानी होती है।

जलोदर रोग में उदर में जल एकत्र होने से उदर फूलने लगता है। उदर फूलकर मटके के समान हो जाता है। ऐसे रोगी को खड़े होने, चलने-फिरने और सीढ़ियां चढ़ने में बहुत कठनाई होती है। बिस्तर पर लेटने पर भी रोगी को बहुत परेशानी होती है। उदर में अधिक जल भर जाने से रोगी हर समय बोझ-सा अनुभव करता है। रोगी में अधिक बेचैनी की स्थिति से गुजरना पड़ता है। पांवों में शोध होने से चलने में कठनाई होती है।

घरेलु चिकित्सा--

  • जलोदर रोग में लहसुन का प्रयोग हितकारी है। लहसुन का रस आधा चम्मच आधा गिलास जल में मिलाकर लेना कर्तव्य है। कुछ रोज लेते रहने से फर्क नजर आएगा। 
  • देसी चना करीब 30 ग्राम 300 मिली पानी में उबालें कि आधा रह जाए। ठंडा होने पर छानकर पियें। 25 दिन जारी रखें।
  • करेला का जूस 30-40 मिली आधा गिलास जल में दिन में 3 बार पियें। इससे जलोदर रोग निवारण में अच्छी मदद मिलती है।
  • जलोदर रोगी को पानी की मात्रा कम कर देना चाहिये। शरीर के लिये तरल की आपूर्ति दूध से करना उचित है। लेकिन याद रहे अधिक तरल से टांगों की सूजन बढेगी।
  • जलोदर की चिकित्सा में मूली के पत्ते का रस अति गुणकारी माना गया है। 100 मिली रस दिन में 3 बार पी सकते हैं।
  • मैथी के बीज इस रोग में उपयोग करना लाभकारी रहता है। रात को 20 ग्राम बीज पानी में गला दें। सुबह छानकर पियें। 
  • अपने भोजन में प्याज का उपयोग करें इससे पेट में जमा तरल मूत्र के माध्यम से निकलेगा और आराम लगेगा।
  • जलोदर रोगी रोजाना तरबूज खाएं। इससे शरीर में तरल का बेलेंस ठीक रखने में सहायता मिलती है।
  • छाछ और गाजर का रस उपकारी है। ये शक्ति देते हैं और जलोदर में तरल का स्तर अधिक नहीं बढाते हैं।
  • अपने भोजन में चने का सूप, पुराने चावल, ऊंटडी का दूध, सलाद, लहसुन, हींग को समुचित स्थान देना चाहिये।

क्या खाएं?

* मूली के पत्तों के 50 ग्राम रस में थोड़ा-सा जल मिलाकर सेवन करें।
* अनार का रस पीने से जलोदर रोग नष्ट होता है।
* प्रतिदिन दो-तीन बार खाने से, अधिक मूत्र आने पर जलोदर रोग की विकृति नष्ट होती है।
* आम खाने व आम का रस पीने से जलोदर रोग नष्ट होता है।
* लहसुन का 5 ग्राम रस 100 ग्राम जल में मिलाकर सेवन करने से जलोदर रोग नष्ट होता हैं।
* 25-30 ग्राम करेले का रस जल में मिलाकर पीने से जलोदर रोग में बहुत लाभ होता है।
* बेल के पत्तों के 25-30 ग्राम रस में थोड़ा-सा छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से जलोदर रोग नष्ट हो जाता है।
* करौंदे के पत्तों का रस 10 ग्राम मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से जलोदर राग में बहुत लाभ होता है।
* गोमूत्र में अजवायन को डालकर रखें। शुष्क हो जाने पर प्रतिदिन इस अजवायन का सेवन करने पर जलोदर रोग नष्ट हो जाता है।

क्या न खाएं?


* जलोदर रोग में पीड़ित व्यक्ति को उष्ण मिर्च-मसालें व अम्लीस रसों से बने चटपटे खाद्य पदार्थो का सेवन नही करना चाहिए।
* घी, तेल, मक्खन आदि वसा युक्त खाद्य पदार्थाो का सेवन न करेें
* गरिष्ठ खाद्य पदार्थों, उड़द की दाल, अरबी, कचालू, फूलगोभी आदि का सेवन न करें।
* चाय, कॉफी व शराब का सेवन न करें।
रोग की गंभीरता पर नजर रखते हुए अपने चिकित्सक से परामर्शानुसार कार्य करें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें